भारत के वर्तमान हालात: बादल, तकनीक, आर्थिक वृद्धि और जीवन से जुड़ी राजनैतिक तस्वीर
- Anubhav Somani
- Aug 26
- 4 min read
भारत आज कई मोर्चों पर बदलाव और चुनौतियाँ झेल रहा है, जो हमारे देश की तस्वीर को बहुत ही दिलचस्प तरीके से परिभाषित करते हैं; एक बड़ी खबर यह है कि अब महँगाई को सही तरीके से मापने के लिए सरकार बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों जैसे अमेज़न और फ्लिपकार्ट से सीधे कीमतों का डेटा इकट्ठा करेगी, जिससे यह पता चल सके कि लोग आजकल क्या-क्या चीजें खरीदते हैं और कितनी शिद्दत से खरीदते हैं, जिससे तैयार हो रहा नया मापदंड कहूँ तो महँगाई का गणित पहले से ज़्यादा प्रामाणिक बनेगा और आपको सही-सही मिलेगा कि दाल-सब्ज़ी के साथ-साथ अब फ़िल्म देखने, हवाई यात्रा और ऑनलाइन मनोरंजन पर खर्च कितना बढ़ा है, यह सब भी ध्यान में रखा जाएगा; इसके साथ ही, सरकार नया जी-डी-पी सीरीज़ बनाएगी और व्यस्त लोगों की रोज़गार की स्थिति जानने के लिए एक मासिक रोजगार सर्वे भी शुरू करेगी और सेवाओं के क्षेत्र पर कब्ज़े को मापने के लिए तिमाही सर्वे यानी केवल खेती-किसानी नहीं, बल्कि पीछे से चलने वाले कारोबारों पर भी नजर रखी जाएगी, क्योंकि सेवाएँ यानी सेवाओं का व्यापार अब देश की अर्थव्यवस्था का आधे से ज्यादा हिस्सा बन चुका है (स्रोत: CPI-सुधार)। दूसरी बड़ी बातें यह हैं कि भारत तकनीकी क्षेत्र में चौथे औद्योगिक क्रांति की ओर बढ़ रहा है, जहाँ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, क्वांटम कंप्यूटिंग और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी तकनीकों के ज़रिए कारोबार बदल रहा है और हमें यह खुशी है कि साल 2025 के अंत तक भारत का खुद का पहला चिप—यानी सेमीकंडक्टर—बनकर तैयार होगा, जिससे हम न केवल तकनीकी रूप से मज़बूत होंगे, बल्कि विदेशी तकनीकी निर्भरता कम करना भी सीखेंगे; इन सबके बीच यह बदलाव बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे उद्योग, नौकरियाँ और आत्मनिर्भरता को बहुत बल मिलेगा (स्रोत: चौथी औद्योगिक क्रांति)। दूसरी तरफ, सीमा और पर्यावरण से जुड़ा मसला भी गहरा है क्योंकि चीन तिब्बत में एक बहुत बड़ा बांध बना रहा है, जिससे ब्रह्मपुत्र नदी में सूखे के समय पानी की आपूर्ति ८५ प्रतिशत तक कम हो सकती है—इससे भारत में बाढ़ या पानी की कमी जैसी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं—तो हमारी सरकार ने उत्तर सियांग में अपना एक बांध जल्दी से बनाने की योजना तेज़ कर दी है, लेकिन वहाँ फिर स्थानीय लोगों को विस्थापन और सुरक्षा के कारण चिंता है; पुराने तनावों के बीच यह मामला भारत-चीन के बीच डिप्लोमैसी और जल संसाधन साझा करने की नज़रिए से एक बड़ा सवाल बन गया है (स्रोत: चीन का बांध और भारत का उत्तर सियांग परियोजना)। आर्थिक मोर्चे पर, वित्त मंत्रालय ने साफ़ कहा है कि आने वाले दशक में देश को ८% प्रतिवर्ष से बढ़ना ज़रूरी है, ताकि वैश्विक अस्थिरता के दौर में हम मजबूत बने रहें, इसके लिए हमें निवेश दर को ३१% से बढ़ाकर ३५% तक लाना होगा और घरेलू मांग को बढ़ाने में मदद करने के लिए उपभोक्ता टैक्स में कटौती और आरबीआई की ओर से ब्याज दर में कटौती जैसी नीतियाँ अपनाई जा रही हैं, ताकि अर्थव्यवस्था में टिकाऊ बढ़ोतरी हो (स्रोत: वित्त मंत्रालय ८ प्रतिशत लक्ष्य)। इसके अलावा, एक बड़ी खबर यह भी है कि संसद ने मानसून सत्र में पाँच नए समुद्री (मैरीटाइम) बिल पास किए हैं, जिनसे देश की प्राचीन नियमों को बदलकर नीला अर्थव्यवस्था यानी ब्लू इकॉनॉमी को आगे बढ़ाया जाएगा और समुद्री क्षेत्रों में नए अवसर पैदा होंगे जैसे नौसेना, मछली पालन, बंदरगाह विकास आदि; यह कदम समुद्री संपदा का बेहतर इस्तेमाल और ऑब्जेक्टिव रेग्युलेशन के लिहाज़ से बहुत आवश्यक था (स्रोत: समुद्री बिल)। इसी बीच, भारत-चीन रिश्तों में थोड़ी गर्माहट दिख रही है, जैसे प्रधानमंत्री ने चीन के मुख्य कूटनीतिज्ञ वांग ई से मुलाक़ात की, जिससे सीमा विवाद के बाद रिश्तों में सुधार की उम्मीदें बढ़ी हैं; दोनों देशों ने अब फ़्लाइट्स, व्यापार, पत्रकारों के वीज़ा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान फिर से शुरू करने पर सहमति जताई है, हालांकि सीमा पर पूरी सहमति नहीं मिली है, लेकिन यह एक सकारात्मक संकेत है (स्रोत: भारत-चीन रिश्ते में सुधार)। साथ ही, तेल के मसले पर भी भारत ने अपनी स्थिति स्पष्ट की—विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि रूस से तेल खरीदकर भारत ने राष्ट्रहित की रक्षा की है, और अगर किसी को हमारी नीति पसंद नहीं है तो वह उसका विरोध कर सकता है, लेकिन हमारे हित को कोई दांव पर नहीं लगा सकता, एक तरह से भारत ने अपनी मर्ज़ी से काम करने की आज़ादी यानी स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी की पुष्टि की (स्रोत: जयशंकर की टिप्पणी)। विदेश नीति की बात करें तो भारत ने पाकिस्तान को बाढ़ का ख़तरा देखने पर पहले बार बिना किसी संधि के माध्यम से ह्यूमेनिटेरियन नोटिस भेजा है, जिससे यह संदेश गया कि विपरीत हालात में देश एक-दूसरे का सहयोग कर सकते हैं, भले कूटनीतिक रिश्ते तनावपूर्ण हों; यह कदम मानवता के नज़रिए से महत्वपूर्ण था (स्रोत: भारत-पाक अहम नोटिस)। आर्थिक दृष्टि से, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और संयुक्त राष्ट्र (UN) दोनों ने भारत की 2025 की विकास दर का अनुमान घटाकर क्रमशः 6.2 प्रतिशत और 6.3 प्रतिशत कर दिया है, जो बताता है कि वैश्विक व्यापार तनाव और ढीली नीति-निर्माण की वजह से हमारी वृद्धि धीमी हो सकती है, लेकिन यह अभी भी सकारात्मक क्षेत्र में बनी हुई है, और सरकार इसका मुकाबला कर रही है (स्रोत: IMF, UN वृद्धि अनुमान)। अंततः, एक और महत्त्वपूर्ण विषय है भारत में अब 16 वर्षों के लंबित रहे जनगणना का डिजिटल संस्करण, जो 2027 तक पूरा होगा और इसमें पहली बार जाति-व्यवस्था के तहत पिछड़ी और अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) की जानकारी भी ली जाएगी, इससे सरकार को योजनाएँ बनाने में मदद मिलेगी, जैसे महिलाओं के लिए आरक्षण, संसदीय सीटों का पुनःनियोजन आदि; यह देश के सामाजिक नक्शे को पुनर्परिभाषित करने वाला कदम होगा (स्रोत: जनगणना)। ये सभी घटनाएँ—महँगाई की सटीक माप, तकनीकी छलांग, जलसंसाधन से जुड़ी चुनौतियाँ, आर्थिक सुधार, नील अर्थव्यवस्था, कूटनीतिक चालन, मानवता पर आधिकारिक निर्णय, वृद्धि दर की समीक्षा, और सामाजिक संरचना की समझ—मिलकर भारत के वर्तमान हालात की एक विस्तृत लेकिन सरल तस्वीर बनाती हैं, जो रेलवे से स्कूल के बच्चों तक और UPSC के छात्र-छात्राओं तक सभी के लिए समझने में आसान है, क्योंकि इससे यह समझना आसान होता है कि देश कौन-कौन-से मोर्चों पर काम कर रहा है और किस दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है।
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